समकालीन हस्तक्षेप: साहित्य, समाज और संस्कृति की शोध-पत्रिका

हिंदी भाषा में समृद्ध शोध परंपरा को आगे बढ़ाने हेतु समकालीन हस्तक्षेप  शोध पत्रिका का नाम लिया जा सकता है। यह एक पूर्व-समीक्षित त्रैमासिक शोध-पत्रिका हैजिसका पंजीयन ISSN 2277-7857 (प्रिंट) के अंतर्गत हुआ है। इस पत्रिका की स्थापना वर्ष 2007 में हुई थी और इसके संस्थापक संपादक अरविन्द कुमार अविनाश थे। उनकी सोच थी कि साहित्य और समाज के विविध पक्षों पर शोध आधारित संवाद को सशक्त मंच प्रदान किया जाए। इसी उद्देश्य से समकालीन हस्तक्षेप ने अपने प्रकाशन की यात्रा आरंभ की।


इस शोध-पत्रिका का मूल उद्देश्य साहित्यसमाजसंस्कृति और कला जैसे विविध मानवीय विषयों पर गंभीर व स्तरीय शोध को प्रकाशित करना है। पत्रिका ने हिंदी साहित्य के साथ-साथ सामाजिक विज्ञानमानविकीसंस्कृतिसमकालीन मुद्दोंऔर दृश्य-श्रव्य कलाओं से जुड़े शोधपत्रों को भी प्राथमिकता दी है। इसने शिक्षाविदोंशोधार्थियों और चिंतकों को एक ऐसा मंच प्रदान किया है जहाँ वे अपने विचारों और निष्कर्षों को समाज के व्यापक परिप्रेक्ष्य में रख सकें।


वर्ष 2023 से समकालीन हस्तक्षेप के संपादकीय दायित्व का निर्वहन डॉ. कपिल कुमार गौतम कर रहे हैं। उनके संपादन में पत्रिका ने न केवल सामग्री की गुणवत्ता को बरकरार रखा हैबल्कि समसामयिक बहसों और मुद्दों को भी गंभीरता से शामिल करना शुरू किया है। डॉ. गौतम की नेतृत्व क्षमता और शोध के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने इस पत्रिका को नए आयाम दिए हैं। प्रबंध संपादक के रूप में शेषनाथ वर्णवाल की भूमिका भी उल्लेखनीय रही हैजिन्होंने पत्रिका की संरचनासंवाद और प्रस्तुति को अधिक व्यवस्थित और प्रभावशाली बनाया है।


वर्तमान में इस शोध पत्रिका का प्रकाशन Research Walkers नामक फर्म द्वारा किया जा रहा हैजिसने इसके डिजिटलीकरणप्रसार और वैज्ञानिक संदर्भ मूल्य को सुदृढ़ किया है। पत्रिका की आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से इसके अतीत और वर्तमान अंकों में प्रकाशित लेखों को पढ़ा जा सकता हैजिससे यह शोधार्थियों और पाठकों के लिए और अधिक सुलभ हो गई है।

समकालीन हस्तक्षेप ने अपने अब तक के प्रकाशन में जिस गंभीरता और निरंतरता के साथ साहित्यिक और सामाजिक विमर्श को आगे बढ़ाया हैवह अनुकरणीय है। यह पत्रिका न केवल हिंदी क्षेत्र मेंबल्कि व्यापक रूप से भारतीय शैक्षणिक और बौद्धिक विमर्श में एक सशक्त हस्तक्षेप के रूप में स्थापित हो चुकी है। इसके आगामी अंकों से भी यही अपेक्षा की जाती है कि यह समाज और समय की जटिलताओं पर केंद्रित विचारोत्तेजक और शोधपरक लेखों का मंच बनी रहेगी।


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